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तव॑ भ्र॒मास॑ आशु॒या प॑त॒न्त्यनु॑ स्पृश धृष॒ता शोशु॑चानः। तपूं॑ष्यग्ने जु॒ह्वा॑ पत॒ङ्गानसं॑दितो॒ वि सृ॑ज॒ विष्व॑गु॒ल्काः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tava bhramāsa āśuyā patanty anu spṛśa dhṛṣatā śośucānaḥ | tapūṁṣy agne juhvā pataṁgān asaṁdito vi sṛja viṣvag ulkāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तव॑। भ्र॒मासः॑। आ॒शु॒ऽया। प॒त॒न्ति॒। अनु॑। स्पृ॒श॒। धृ॒ष॒ता। शोशु॑चानः। तपूं॑षि। अ॒ग्ने॒। जु॒ह्वा॑। प॒त॒ङ्गान्। अस॑म्ऽदितः। वि। सृ॒ज॒। विष्व॑क्। उ॒ल्काः॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:4» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राज विषय में सामान्य से राजजनों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश वर्त्तमान ! जो (तव) आपके (आशुया) शीघ्र (भ्रमासः) भ्रमण (पतन्ति) गिरते हैं, उनको (धृषता) प्रगल्भ सेना के साथ (शोशुचानः) अत्यन्त पवित्र हुए (अनु, स्पृश) स्पर्श करो और (जुह्वा) होम के साधन से अग्नि (तपूंषि) तपाये गये पदार्थों को जैसे वैसे (पतङ्गान्) अग्निकणों के सदृश वर्त्तमान घोड़ों को अनुकूलता से स्पर्श करो (असन्दितः) खण्डरहित हुए (उल्काः) बिजुलियों को (विष्वक्) सर्व प्रकार (वि, सृज) छोड़िये ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो राजजन फुरतीवाले होते हुए शीघ्र कार्य्यकारी हों, वे अखण्डितवीर्य्य अर्थात् पूर्णबलवाले होकर बिजुली के प्रयोगों और ब्रह्मास्त्र आदि अस्त्रों को शत्रुओं के ऊपर कर विजय को प्राप्त हों ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषये सामान्यतो राजजनविषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! ये तवाऽऽशुया भ्रमासः पतन्ति तान् धृषता शोशुचानोऽनुस्पृश जुह्वाग्निस्तपूंषीव पतङ्गाननु स्पृश। असन्दितः सन्नुल्का विष्वग्विसृज ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तव) (भ्रमासः) भ्रमणानि (आशुया) क्षिप्राणि (पतन्ति) (अनु) (स्पृश) (धृषता) प्रगल्भेन सैन्येन (शोशुचानः) भृशं पवित्रः सन् (तपूंषि) प्रतप्तानि (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान (जुह्वा) होमसाधनेन (पतङ्गान्) अग्निकणा इव वर्त्तमानानश्वान् (असन्दितः) अखण्डितः (वि) (सृज) (विष्वक्) सर्वशः (उल्काः) विद्युतः ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये राजजना स्फूर्त्तिमन्तः सन्त आशुकारिणः स्युस्तेऽखण्डितवीर्यो भूत्वा विद्युत्प्रयोगान् ब्रह्मास्त्राद्याञ्छत्रूणामुपरि कृत्वा विजयं प्राप्नुवन्तु ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजे स्फूर्तिवान, शीघ्र कार्य करणारे असतील त्यांनी पूर्णबलयुक्त बनून विद्युत प्रयोगाने ब्रह्मास्त्र इत्यादीच्या साह्याने शत्रूंवर विजय प्राप्त करावा. ॥ २ ॥